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आखिर क्यों और कैसे हुआ हाथरस की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म

Script by : Mandeep Kaur Chhabra

आखिर कब तक सहना होगा मुझे,
जुल्म की इस हवा को,
जो खुले आम बहती है,
मेरे ही आँगन में।
आखिर कब तक जलना होगा मुझे,
बेबसी की इस आग में,
जो बीच बाज़ार जलाती है मुझे,
मेरे ही शहर में,
आखिर कब तक मरना होगा मुझे,
तुझे नींद से जगाने के लिए,
बेज़ार हो रही रूह मेरी,
क्योकि मुर्दे और हैवान रहते है मेरे इस जहान में।
आखिर कब तक….ऐ मेरे हज़ूर।

आज हम बात करने जा रहे है हमारे भारत देश की जहां बेटियों को देवी का दर्जा दिआ जाता है। जी हाँ, देवी, तो आखिर क्यों उसी देवी के साथ होता है अत्याचार? क्यों उसी देवी को हरबार देनी पड़ती है परीक्षाएं? क्या कसूर था सीता माँ का, यही की वह इस समाज का हिस्सा थी जो औरत की भावनाओ की कदर नहीं करता ?

हमारे देश को आजाद हुए लगभग 73 साल हो चुके है, पर अब तक नारी पर हो रहे बलात्कारों का सिलसिला नहीं थमा। आखिर क्यों ? ऐसा क्या है जो इस दोष को खत्म होने से रोक रहा है। आप सब जानते है, बस जरूरत है गहरी नींद से जागने की। अब जरूरत है इस बीमारी से देश को आजाद करवाने की।

बात है उत्तरप्रदेश के हाथरस की मनीषा वाल्मीकि की, जिसका जन्म 2000 में हुआ था। एक 19 साल की दलित बच्ची जो अपने परिवार के साथ हसी ख़ुशी अपनी जिंदगी जी रही थी, अचानक एक हादसे ने उनके परिवार को बिखेर दिआ। रिपोर्ट्स के अनुसार 14 सितंबर 2020 को हाथरस के उच्च जाती के 4 पुरषो द्वारा उसके साथ क्रूरता से बलात्कार किआ गया जब वह खेत में चारा इकठा कर रही थी।

मनीषा की माँ का कहना है की वह अपनी बेटी से कुछ दूरी पर फसल काटने का काम कर रही थी, कानो में रुई होने की वजह से शायद वह उसकी चीखे और पुकार नहीं सुन सकी। मनीषा का अपहरण उसी के दुपटे के इस्तेमाल से किया गया अर्थात उसी के दुपटे को उसके गले में डाल कर उसे घसीटा गया। सूत्रों के अनुसार चारो अपराधी वहीं पास में कसरत करने आते थे और उनकी लड़की पर पहले से ही नजर थी। चारो अपराधी खेत में काम कर रही मनीषा को जबरन बाजरे के खेत में ले गए और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। इसी बीच मनीषा को काफी चोटें भी आयी, उसकी रीढ़ की हडी तोड़ दी, उसकी जीब कट गयी।

पीड़ित की माँ का कहना है की जब वह पीछे मुड़ी तो उन्हें मनीषा कही भी नजर नहीं आयी,तब उन्होंने सोचा शायद वो घर चली गयी होगी। पर जब पीड़ित की माँ ने वहाँ पर बेटी की चपल देखी तो वह उसके चपल से बने निशानों का पीछा करती हुई क्राइम स्थान तक पहुंची। जहाँ पर उन्होंने मनीषा को बिना कपड़ो के पाया, माँ ने अपने पलु से अपनी बेटी के जिस्म को ढका, सदमे में खोयी माँ ने बताया की बेटी की हालत बहुत ख़राब थी, आखो और मुँह से खून निकल रहा था। लहू और लाचारी से लतपत बेटी को माँ ने खेतो से बाहर निकाला ।

मनीषा के घरवालों का कहना है की स्थानीय पुलिस ने भी उनका साथ अच्छे से नहीं दिया। FIR लिखने के बाद पुलिस का एक कर्मचारी आधे रास्ते तक उनके साथ गया। परिवार का आरोप है की पुलिस वाले उनके साथ हस्पताल तक नहीं गए। यहाँ तक की मनीषा को ICU में भी जनता के प्रेशर के बाद राजनितिक दलों के कहने पर रखा गया। मनीषा को 28 सितंबर को दिल्ली के सफ़दरजंग हस्पताल में लेजाया गया। 29 सितंबर को एक ओर निर्भया और रेप पीड़िता ने बिना इन्साफ पाए इस धरती को अलविदा कह दिया। मनीषा के पिता ने बताया की आखिरी वक़्त पर उनकी बेटी उनसे कह रही थी, की पापा मुझे घर जाना है , मुझे घर ले चलो। अब सवाल है देश की जनता से की वह क्या चाहती है, इन जुल्मो से आजादी या फिर हमेशा की तरह कटपुतली बनकर देखना चाहती है पीड़ितों का तमाशा!

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