दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के कविता को सोमवार को अंतरिम जमानत देने से मना कर दिया. ट्रायल कोर्ट के जज ने इस दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सबूतों के अलावा मामले के गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया गया है.
राउज एवेन्यू कोर्ट के लिखित आदेश के मुताबिक, बीआरएस नेता इस मामले में अहम सबूतों को खत्म करने में शामिल रही हैं. उन्होंने जांच में शामिल होने से पहले फोन को फॉर्मेट कर सबूतों को खत्म कर दिया. फॉरेंसिक रिपोर्ट से भी इसकी पुष्टि होती है. वह गवाहों को भी प्रभावित करने में शामिल रही हैं. अगर उन्हें अंतरिम बेल दी जाती है तो आगे भी उनकी ओर से ऐसा करने की पूरी आशंका है.
आदेश के अनुसार, “के कविता कोई कमजोर या लाचार महिला नहीं है. वह एक अच्छी, पढ़ी-लिखीं और सक्षम महिला हैं. ऐसे में सिर्फ महिला होने के नाते वो पीएमएलए के सेक्शन 45 के तहत (बेल की दोहरी शर्तो में) छूट की हकदार नहीं हो सकतीं. जो तथ्य अदालत के सामने रखे गए हैं, उनके मद्देनजर इस केस में के कविता की भूमिका प्रथम दृष्टया साबित हो रही है. जहां तक के कविता की ओर से बच्चे की परीक्षा का हवाला देकर बेल मांगी गई है तो परिवार में पिता समेत दूसरे लोग भी हैं, जो बच्चे का ख्याल रख सकते हैं.”
राउज एवेन्यू कोर्ट की स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि उन्हें अंतरिम जमानत देने का यह सही समय नहीं है. हालांकि, बीआरएस नेता ने बेटे की परीक्षा के आधार पर अंतरिम जमानत मांगी थी. याचिका के जरिए कहा था कि उनके 16 साल बेटे के पेपर हैं और ऐसे में उसे मां के ‘‘नैतिक और भावनात्मक समर्थन’’ की जरूरत है.
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